नई दिल्ली, 29 अप्रैल 2025, 06:05 PM IST – pahalgam attack
22 अप्रैल को पहलगाम में हुए भयावह आतंकी हमले के बाद, जिसमें 27 लोगों की जान गई, देश का माहौल बेहद तनावपूर्ण हो गया है। इस स्थिति में राजनीतिक नेता हर कदम फूंक-फूंककर रख रहे हैं। खासकर विपक्ष, विशेष रूप से कांग्रेस, के लिए यह समय बेहद चुनौतीपूर्ण हो गया है, क्योंकि सरकार की आलोचना जोखिम भरा हो गया है। इसी बीच कुछ कांग्रेस नेताओं के लापरवाह बयानों ने भाजपा को पलटवार का मौका दे दिया है, जिससे राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे की मुश्किलें बढ़ गई हैं।
विवाद की शुरुआत तब हुई जब महाराष्ट्र कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार ने सवाल उठाया कि क्या आतंकवादियों के पास पीड़ितों की धार्मिक पहचान जांचने का समय था। उन्होंने सरकार से इस सुरक्षा चूक की जिम्मेदारी लेने की मांग की। उनके इस बचाव से परे बयान पर भाजपा नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया दी। मुख्तार अब्बास नकवी ने कुछ नेताओं पर पाकिस्तान का समर्थन करने का आरोप लगाया, जबकि शहजाद पूनावाला ने कांग्रेस पर पाकिस्तान को क्लीन चिट देने का इल्ज़ाम लगाया।
विवाद और गहरा गया जब रॉबर्ट वाड्रा ने सुझाव दिया कि यह हमला मुसलमानों के साथ कथित अन्याय का बदला हो सकता है, और मणिशंकर अय्यर ने इसे भारत विभाजन से जोड़ा। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का बयान कि युद्ध की जरूरत नहीं, बल्कि सुरक्षा बढ़ानी चाहिए, ने आलोचना को हवा दी, जिसके बाद उन्होंने अपनी बात को गलत पेश किए जाने का स्पष्टीकरण दिया। भाजपा के रविशंकर प्रसाद ने इन बयानों को “असंवेदनशील” करार देते हुए सवाल उठाया कि क्या राहुल और खड़गे का नियंत्रण पार्टी पर है या नहीं, और सिद्धारमैया के बयान तक पाकिस्तानी चैनलों पर दिखाए जा रहे हैं।
इस सब से नाराज राहुल गांधी ने नेताओं को अपनी जुबान पर काबू रखने का निर्देश दिया। प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने स्पष्ट किया कि पहलगाम मुद्दे पर सिर्फ राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे ही पार्टी की आधिकारिक राय रख सकते हैं। पार्टी सूत्रों के अनुसार, दोनों नेता इस असंगति से बेहद नाराज हैं और जनता में भ्रम को रोकने के लिए एकजुट रुख अपनाने का निर्देश दिया गया है।
राहुल गांधी की सक्रियता—हमले के बाद कश्मीर पहुंचने वाले पहले विपक्षी नेता बनकर और सरकार के आतंकवाद विरोधी प्रयासों का समर्थन करने का वादा—नेताओं की गलतियों से उलट है। लेकिन नुकसान हो चुका है, और भाजपा ने हमला तेज कर दिया है। देश के आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होने के बीच कांग्रेस को अपनी छवि बचाने के लिए कड़ा संघर्ष करना होगा। आने वाले दिन बताएंगे कि क्या पार्टी इस राजनीतिक संकट से उबर पाएगी या अंदरूनी मतभेदों के बोझ तले दब जाएगी।