Dr. Laxman Yadav कलम और किताब की लड़ाई: धर्म के नाम पर भटकते नौजवानों को सच्चाई का आलम”

yash
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Dr. Laxman Yadav

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हमारे पुरखों की विरासत: कलम और किताब

हमारे पुरखों ने कलम और किताब के लिए खून-पसीना बहाया। उन्होंने त्रिशूल और तलवार से नहीं, बल्कि ज्ञान और विचारों से समाज को जोड़ा। लेकिन आज कुछ लोग हमारे नौजवानों को भटका रहे हैं। वे कहते हैं, “पढ़-लिखकर क्या करोगे, जब धर्म खतरे में है?” वे हमारे बच्चों को दंगों की आग में झोंक रहे हैं, जबकि उनके अपने बच्चे विदेशों में पढ़ रहे हैं, बड़े-बड़े पदों पर बैठ रहे हैं। यह दोहरा चेहरा हमें समझना होगा।

दोहरा चेहरा: उनके बच्चे और हमारे बच्चे Dr. Laxman Yadav

एक तरफ वे लोग हैं, जो अपने बेटे-बेटियों को अच्छे स्कूलों में पढ़ाते हैं, उन्हें विदेश भेजते हैं। दूसरी तरफ, हमारे आपके घर के बच्चों को कहते हैं, “धर्म बचा, देश बचा।” लेकिन सवाल यह है—क्या धर्म सचमुच खतरे में है? या यह एक ऐसा जाल है, जिसमें हमारे नौजवान फंस रहे हैं? एक उदाहरण देखिए—जिस बेटे को बैट-बॉल पकड़ना नहीं आता, वह पहले बीसीसीआई का चेयरमैन बना और अब आईसीसी का चेयरमैन है। उसके पिता दिल्ली में बैठकर देश चलाते हैं। उनके लिए परिवारवाद सर्वोपरि है। जब कोरोना आया, तो उनके बेटे का बिजनेस 50 गुना बढ़ गया। लेकिन हमारे बच्चों को क्या मिला? सिर्फ धर्म के नाम पर उन्माद और भटकाव।

धर्म का भ्रम: सच्चाई क्या है?

हमारे बच्चे स्कूल नहीं बचा पा रहे, घर नहीं बचा पा रहे, और उन्हें धर्म बचाने की बात सिखाई जा रही है। बचपन में हमें बताया गया कि धर्म वह है, जिसमें भगवान इंसान की रक्षा करते हैं। लेकिन बड़े होने पर कहा गया कि इंसान को भगवान की रक्षा करनी है। यह विरोधाभास क्यों? उत्तर प्रदेश में एक पोस्टर चला था—”जो उनको लाए हैं, हम उनको लाएंगे।” समझदार को इशारा काफी है। लेकिन हमें सजग होना होगा। एक तरफ बुलडोजर है, दूसरी तरफ न्यायालय। बोलने की आजादी है, लेकिन सच बोलने का जोखिम भी है।

इतिहास का मिटाया सच

इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश किया जा रहा है। एनसीईआरटी के सिलेबस से मुगल काल गायब कर दिया गया। अगर मुगल काल नहीं पढ़ाया जाएगा, तो कैसे समझाएंगे कि महाराणा प्रताप महान योद्धा थे? बच्चे पूछेंगे, “उन्होंने किसके खिलाफ लड़ाई लड़ी?” तो क्या कहेंगे? “जुल्म के खिलाफ?” लेकिन जुल्म करने वाला कौन था? यह सच छिपाना इतिहास को मिटाने जैसा है। ज्योतिबा फुले ने अपनी किताब “गुलामगिरी” और “शिवाजी का पवाड़ा” में साफ लिखा कि शिवाजी किसानों के राजा थे। उनकी सेना में मुसलमान सैनिक भी थे, जो एक मुसलमान शासक के खिलाफ लड़े। शिवाजी का स्वराज अमानवता का नहीं, इंसानियत का परचम था।

शिवाजी की सच्चाई: शूद्र या शासक?

शिवाजी की तलवार में कोई कमी नहीं थी, फिर भी उनका राजतिलक क्यों नहीं हो पाया? बाहर से किसी को बुलाना पड़ा। क्यों? क्योंकि उन्हें शूद्र कहा गया। ज्योतिबा फुले और बाबा साहब अंबेडकर ने बताया कि शूद्र कोई जन्म से नहीं थे। यह वर्ण व्यवस्था थोपी गई। हमारे शासक, जैसे सम्राट अशोक, मौर्य वंश, पाल वंश, प्रतिहार वंश—ये सब शूद्र नहीं थे। लेकिन वर्ण व्यवस्था ने उन्हें गुलाम बनाने की साजिश रची।

शिक्षा ही रास्ता: जहां शिक्षा, वहां धर्म सुरक्षित

आज जरूरत है कि हम फुले और अंबेडकर के विचारों को अपनाएं। हमें मजहबी उन्मादियों के खिलाफ लड़ना होगा, जो दंगे भड़काते हैं। जहां शिक्षा है, वहां धर्म खतरे में नहीं है। केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश इसका उदाहरण हैं। तमिलनाडु देश का सबसे तेजी से बढ़ता जीडीपी वाला राज्य है। वहां के सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी पढ़ाई जाती है, मिड-डे मील में पौष्टिक भोजन मिलता है। लेकिन हमारे उत्तर प्रदेश में क्या हो रहा है? वहां के मुख्यमंत्री का नाम लेने की जरूरत नहीं, कबीर का दोहा काफी है—”मन ना रंगाए, रंगाए जोगी कपड़ा।”

आह्वान: कलम उठाओ, किताब खोलो

हमें अपने नौजवानों को बताना होगा कि कलम और किताब ही हमारा हथियार है। धर्म के नाम पर भटकने से नहीं, शिक्षा और जागरूकता से देश बचेगा। आइए, हम सब मिलकर उस मशाल को थामें, जो तथागत बुद्ध से शुरू होकर कबीर, फुले, शाहूजी महाराज और बाबा साहब अंबेडकर तक पहुंची। यह मशाल संविधान की है, जो कहता है—कोई मुख से पैदा नहीं, कोई पैर से नहीं। इंसान-इंसान बराबर है।

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