caste census जातिगत जनगणना के फायदे और नुकसान

yash
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caste census

Advantages and disadvantages of caste census

  1. caste census जातिगत जनगणना और OBC आबादी: कर्नाटक में हाल की caste census जातिगत जनगणना के अनुसार, लगभग 70% आबादी OBC वर्ग की है। बिहार और तेलंगाना में भी ऐसी जनगणना के आंकड़े सामने आए हैं, जो सामाजिक न्याय और आरक्षण की मांग को और मजबूत करते हैं। यह राजनीतिक दलों के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है, क्योंकि यह वोट बैंक को प्रभावित करता है।
  2. आरक्षण नीतियां: तमिलनाडु (69%) और झारखंड (77%) जैसे राज्यों में उच्च आरक्षण लागू है, जिसमें एससी, एसटी, और OBC शामिल हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट द्वारा 50% की सीमा के कारण कई राज्यों में कानूनी चुनौतियां आती हैं। बिहार और झारखंड जैसे राज्यों ने इस सीमा को हटाने की कोशिश की, लेकिन अदालतों ने रोक लगा दी। यह एक जटिल संवैधानिक मसला है।
  3. करणी सेना और बीजेपी: करणी सेना, जो मुख्य रूप से सामान्य वर्ग (खासकर राजपूत) के हितों का प्रतिनिधित्व करती है, ने हाल के समय में बीजेपी के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया है। आपके द्वारा उल्लिखित आगरा की घटना और राणा सांगा विवाद इसका उदाहरण हो सकता है। हालांकि, सामान्य वर्ग की आबादी (10-15%) की तुलना में एससी, एसटी, और ओबीसी (लगभग 85%) की भारी संख्या के कारण बीजेपी के लिए यह रणनीतिक चुनौती है। बीजेपी को सामाजिक समीकरणों को संतुलित करना पड़ता है, जिसमें सामान्य वर्ग के साथ-साथ पिछड़े वर्गों का समर्थन भी जरूरी है।
  4. हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण vs. सामाजिक न्याय: आपने सही कहा कि बीजेपी ने हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण से कुछ राज्यों (जैसे बंगाल) में लाभ उठाया है। लेकिन सामाजिक न्याय और जातिगत मुद्दों के उभरने से विपक्षी दल, जैसे कांग्रेस और सपा, इन मुद्दों को भुनाने की कोशिश कर रहे हैं। खासकर बिहार और यूपी जैसे राज्यों में, जहां ओबीसी और दलित वोट निर्णायक हैं, यह रणनीति प्रभावी हो सकती है।
  5. बिहार और यूपी की राजनीति: बिहार में महागठबंधन (RJD, कांग्रेस, आदि) और यूपी में सपा-बसपा जैसे गठबंधन अगर जातिगत समीकरणों को सही से भुनाते हैं, तो बीजेपी के लिए चुनौती बढ़ सकती है। आपके द्वारा उल्लिखित प्रशांत किशोर और उनकी रैली की नाकामी इस बात का संकेत देती है कि सामाजिक आधार के बिना केवल पैसा और मीडिया काम नहीं करता। दूसरी ओर, तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव, और मायावती जैसे नेताओं का सामाजिक आधार मजबूत है।
  6. संवैधानिक अधिकार और बाबासाहेब की जयंती: आपने बाबासाहेब अंबेडकर के योगदान और संविधान की ताकत पर जोर दिया, जो बिल्कुल सही है। वोट का अधिकार और संवैधानिक ढांचा ही वह रास्ता है, जिससे सामाजिक बदलाव संभव है। यह भी सच है कि अगर 90% आबादी (एससी, एसटी, ओबीसी) संगठित और जागरूक होती है, तो यह देश की राजनीति और नीतियों को पूरी तरह बदल सकती है।

मेरा विश्लेषण: करणी सेना का आक्रामक रुख अल्पकाल में बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकता है, खासकर उन राज्यों में जहां सामान्य वर्ग का वोट पहले से ही सीमित है। लेकिन बीजेपी की रणनीति हमेशा सामाजिक समीकरणों को संतुलित करने की रही है। दूसरी ओर, विपक्षी दलों के लिए यह सुनहरा मौका है, अगर वे जातिगत जनगणना और सामाजिक न्याय के मुद्दे को सही से उठाएं। बिहार और यूपी में 2024-25 के चुनावों में यह स्पष्ट होगा कि सामाजिक न्याय का मुद्दा धार्मिक ध्रुवीकरण को कितना चुनौती देता है।

नोट: अगर आप चाहें, तो मैं किसी खास बिंदु पर और गहराई से जानकारी दे सकता हूँ, जैसे कर्नाटक की जनगणना के आंकड़े, करणी सेना की गतिविधियों का विश्लेषण, या बिहार के चुनावी समीकरण। साथ ही, बाबासाहेब की जयंती की आपको भी अग्रिम शुभकामनाएं!

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